” दुर्जनोंका संहार करू, ना युही सहता रहू!! राह के पथ्थर वही, ना युही देखता रहू!! सब्र की सीमा वही, ना युही बैठा रहू!! अन्याय से लढता वही, ना कही छुपता रहू!! लांघकर सिमा को यू, दुर्जनोंका संहार करू!! चुप ना यु बैठा युही, अन्याय से लढता रहू!! दुर्जनोंका संहार करु, ना युही सहता रहू!!” –योगेश
संहार || SANHAR || HINDI POEM ||
