“क्या गुनाह था
सजा इतनी पाईं
तु पास होके भी
कैसी ये तनहाईथम गई सासें
बंद है ये ऑंखें
नाम लेते लफ्ज
खामोशी क्यु है छाईयांदे तेरी सताएगी
अकेले मे रुलायेगी
प्यार की ऐ आग
जितेजी जलायें गी”
– योगेश खजानदार
“क्या गुनाह था
सजा इतनी पाईं
तु पास होके भी
कैसी ये तनहाईथम गई सासें
बंद है ये ऑंखें
नाम लेते लफ्ज
खामोशी क्यु है छाईयांदे तेरी सताएगी
अकेले मे रुलायेगी
प्यार की ऐ आग
जितेजी जलायें गी”
– योगेश खजानदार