“दुआयें मांगी थी!! मिन्नतें मांगी थी!! भगवान के दर पे, सब बातें कही थी!! फिर भी न कोई आवाज, ना कोई मदत मिली थी!! पत्थर दिल है भगवान, सच्ची आरजू न सुनी थी!! न सोना ना चांदी, ऐसी मिन्नतें नहीं थी!! अपने बस मिल जाये, एक ख्वाहिश यही थी!! फिर क्यों मिल गये, अधुरी जिनकी साथ थी!! अपने न मिल पाए कही, दुआयें मेरी बेअसर थी!! एक शिकायत तुझसे यही, मन से जो कही थी!! तु तो ना बन पत्थर दिल, एक आरजु यह थी!!” -योगेश खजानदार
आरजु || AARAJU || HINDI || POEM ||
